मैं दर्शक

मै दर्शक , जानु जहां का किनारा
वहां बैठ मै ,देखु सब नजारा

कोई नहीं हूं, सब कुछ ना आए मुझे
कुछ ना चाहूं, सब कुछ की भी ना चाह मुझे
बस बैठा हूं, फिर भी दुनिया मुझे कहे आवारा

गाली देता हूं, एक सादगी कहां मंजूर
मौन रहता हूं,खुद से ज्यादती काहे हजूर
यही बनी समझ है मेरी , एक मिला जुला हूं मै गवारा

भीड़ में भी , रह सकता हूं अकेला
मै अकेला भी, नहीं होता हूं अकेला
ना मुझे सब साफ़ पसंद है, और ना हूं मैं मैला

ऐसे बांट कर खुद को ,मै देता हूं खुद को ही सहारा
मै दर्शक , जानु जहां का किनारा
वहां बैठ मै, देखुं सब नजारा।

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